दिनांक 30.01.2020
छात्रों ने अपनी मेहनत से बनाई सांची विश्वविद्यालय की योग शाला
- मात्र प्राकृतिक संसाधनों का किया गया उपयोग
- योग शाला की छत घास-फूस से बनाई गई
- फर्श को मिट्टी पर गोबर लीपकर किया तैयार
- वसंत पंचमी के मौके पर किया गया उद्घाटन
- गांव-गांव जाकर योग सिखाएगी सांची विवि की टीम
- गांधी जी को भी किया गया याद
- “कर्मयोगी थे गांधी जी”
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में योग विभाग के छात्रों द्वारा तैयार की गई योग शाला का उद्घाटन किया गया। इस योग शाला की खास बात यह है कि इसे अधिकांश प्राकृतिक चीज़ों से तैयार किया गया है। योग विभाग के सभी छात्रों ने इस योग शाला में अपने हाथों से घास के माध्यम से छत को बनाया, फर्श को गोबर और मिट्टी से लीपा और बौद्ध चबूतरे को तैयार किया।
योग शाला के दरवाज़े बांस और लकड़ी से, परिसर की चार दीवारी नारियल की रस्सी और खजूर(छींद) के पत्तों से तैयार की गई है। बौद्ध योग केंद्र की दीवारें बल्लियों से और इसकी भी छत घास से तैयार की गई है। ध्यान और योग क्रियाओं के दौरान मच्छर-मक्खी परेशान न करें इसके लिए बारीक नेट लगाई गई है।
योग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ उपेंद्र बाबू खत्री ने बताया कि छात्रों ने इस योग शाला के निर्माण के बाद यह कार्ययोजना बनाई है कि वे गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को योग सिखाएंगे। डॉ खत्री के अनुसार ऐसे प्रयास किए गए कि कम से कम खर्च और प्राकृतिक संसांधनों से...प्राकृतिक वातावरण वाली प्रयोगशाला बने।
वसंत पंचमी और गांधी जी की पुण्य तिथि के मौके पर आयोजित किए गए इस उद्घाटन कार्यक्रम में हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ राहुल सिद्धार्थ ने बताया कि कैसे हिंदी साहित्य में वसंत का उल्लेख किया गया है। उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य की शुरुआत 1000 ईसवीं से हुई थी। तब से ही वसंत ऋतु का ज़िक्र हिंदी साहित्य में मिलता आ रहा है। उनका कहना था कि 16वीं शताब्दी में पद्मावत के लेखक मलिक मोहम्मद जायसी ने भी अवधी में किए गए अपने लेखन में वसंत का ज़िक्र किया है। इसी तरह से भारतेंदु, नज़ीर अकबराबादी, सुभद्रा कुमारी चौहान, सुमित्रानंदन पंत, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी और विद्या निवास मिश्र ने अपनी कविताओं में वसंत का उल्लेख किया है।
योग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ उपेंद्र बाबू खत्री ने बताया कि गांधीजी भी योग किया करते थे। उनका कहना था कि गांधी जी कर्म योग के योगी थी। डॉ खत्री ने बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा, महात्मा गांधी जी के पास योग सीखने गए थे। उन्होंने सुबह 4 बजे उठकर जानने का प्रयास किया कि गांधी जी किस प्रकार से योग साधना करते हैं। तीन-चार दिवस बाद जब उन्होंने पाया कि गांधी सुबह उठकर कोई योग नहीं करते हैं तो उन्होंने गांधी जी से इस बारे में बात की। गांधी जी ने उन्हें अगली सुबह उनके साथ उठकर चलने के लिए कहा। अगली सुबह गांधी जी ने सुबह अपने हाथों से अपने टॉयलेट-बाथरूम को साफ किया। इस पर आचार्य श्रीराम शर्मा को कोई योग जैसी बात समझ में नहीं आई। तब उन्होंने दोबारा गांधी जी से बात की। गांधी जी ने उनसे इसी प्रक्रिया को करने को कहा। आचार्य श्रीराम शर्मा कहते हैं कि तीन दिन बाद उन्हें गांधी जी की कर्मयोग की साधना का अर्थ समझ में आया।