दिनांक 04 अगस्त, 2020
‘गुरुकुल शिक्षा की प्रथम सीढ़ी मातृकुल है’
- ‘मां से ही बच्चा सबसे पहले शब्द बोलना सीखता है’
- ‘समसामयिक विषयों को भी संस्कृत में पढ़ाया जाए’
- सांची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा ऑनलाइन आयोजन
- 3-4 अगस्त 2020 को संस्कृत सप्ताह का यूट्यूब पर किया गया लाइव प्रसारण
- बैंगलोर एवं त्रिपुरा विश्वविद्यालय के कुलपति थे मुख्य वक्ता
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा 03 तथा 04 अगस्त को द्विदिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। “गुरुकुल परम्परा : आदर्श शिक्षा पद्धति का अन्वेषण” विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला के पहले दिन मुख्य वक्ता के रूप में स्वामिविवेकानन्द योगानुसन्धान विश्वविद्यालय, बेङ्गलेरू के कुलपति प्रो. रामचन्द्र भट्ट ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा का प्रथम सोपान मातृकुल है। माता से ही बालक सर्वप्रथम वर्ण-उच्चारण की शिक्षा पाता है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित महाराजा वीर विक्रम विश्वविद्यालय, अगरतला, त्रिपुरा के कुलपति प्रो. सत्यदेव पोद्दार ने संस्कृत साहित्य की बृहत् परम्परा को श्रोताप् के सामने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष साँची विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री अदितिकुमार त्रिपाठी रहे। श्री त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में आत्म-निर्भर भारत के निर्माण में संस्कृत भाषा की उपादेयता पर प्रकाश डाला।
04 अगस्त को श्री दिनेश कामत, संस्कृत भारती के अखिल भारतीय सङ्घटन मन्त्री ने मुख्य वक्ता के रूप वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कृत की उपयोगिता विषय पर व्याख्यान दिया। अपने व्याख्यान में श्री कामत ने संस्कृत भारती द्वारा देश-विदेश में चलाये जा रहे आनलाइन संस्कृत सम्भाषण वर्गों की विस्तृत जानकारी दी। व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हिमाचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री ने विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में समसामयिक विषयों को भी संस्कृत में पढ़ाने की नीति पर जोर दिया। सांची विश्वविद्यालय के कुलपति एवं संस्कृति, जल एवं खाद्यान्न मन्त्रालय के प्रमुख सचिव श्री शिव शेखर शुक्ल ने संस्कृत ज्ञान परम्परा का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया । कार्यक्रम के संचालक डॉ. विश्व बन्धु ने संस्कृत में परस्पर सम्भाषण को सुलभ बनाने हेतु साँची विश्वविद्यालय के द्वारा चलाये जाने वाले पाठ्यक्रमों से श्रोताओं को अवगत कराया ।
भारत में प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1969 से ही केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा संस्कृत दिवस मनाया जाता है। इस दिन को इसीलिए चुना गया था क्योंकि इसी दिन प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र शुरू होता था। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डॉ. विश्व बन्धु ने बताया कि संस्कृत दिवस से पहले तीन दिन और दिवस से बाद वाले तीन दिन मिलाकर “संस्कृत सप्ताह” का आयोजन किया जाता है। दोनों ही व्याख्यानों को यूट्यूब चैनल पर रिकॉर्डिंग के रूप में देखा जा सकता है।