अपने भृत्य से माफी मांगी थी डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने
- सांची विश्वविद्यालय में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जन्म दिवस पर विशेष परिचर्चा
- बेहद सादगी से रहते थे राजेंद्र बाबू
- बिहार में 4 विश्वविद्यालयों को स्थापित कराया था डॉ. प्रसाद ने
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के 139वें जन्म दिवस के अवसर पर विशेष परिचर्चा आयोजित की गई। “डॉ. राजेंद्र प्रसाद और भारतीय संस्कृति में उनका योगदान” विषय पर आयोजित इस परिचर्चा में भोपाल के हमीदिया कॉलेज के दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जेएस दुबे व राजनीति शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. पुष्पेंद्र त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त किए।
प्रो. जेएस दुबे ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति रहते हुए भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू से मतभेद थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद होने वाले उद्घाटन समारोह में शामिल होना चाहते थे। इस पर पंडित नेहरू ने उन्हें जाने से मना किया था जिस पर डॉ. प्रसाद ने कहा था कि मैं पहले एक हिंदू हूं और बाद में राष्ट्रपति।
प्रो. जे.एस दुबे ने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद हमेशा कहा करते थे कि जो बात सैद्धांतिक रूप से ग़लत है वो व्यवहारिक रूप से भी ग़लत रहेगी। किसी भी मंज़िल को पाने के लिए साध्य और साधन की शुचिता ज़रूरी होती है। सादगी का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए हीनता नहीं गरिमा का द्योतक होती थी सादगी।
प्रो. पुष्पेंद्र त्रिपाठी ने परिचर्चा के दौरान बताया कि उस दौर में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति के तौर पर प्रत्येक माह 10 हज़ार रुपए का वेतन मिलता था। लेकिन डॉ. प्रसाद इसमें से मात्र 2 हज़ार रुपए ही लेते थे बाकी पैसे लौटा दिया करते थे।
सांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1949 में बिहार में संस्कृत भाषा पर विशेष शोध के लिए के दरभंगा में, पाली भाषा पर विशेष शोध के लिए नालंदा(राजगृह) में, प्राकृत भाषा पर विशेष शोध के लिए वैशाली में तथा फ़ारसी भाषा पर विशेष शोध के लिए पटना में केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की अनुशंसा की थी।
विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. नवीन कुमार मेहता ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के महान व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए बताया कि राष्ट्रपति रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद को हाथी दांत का बना हुआ कलम-दवात भेंट किया। राष्ट्रपति भवन में उनके भृत्य के हाथ से दवात गिर कर टूट गया और स्याही फैल गई। इस पर डॉ. प्रसाद ने भृत्य तुलसी को हल्का सा डांट दिया। जिसके बाद वो अपने कार्य में लग गए। लेकिन यह बात उन्हें बार-बार दिल में चुभ रही थी। उन्होंने भृत्य को बुलाया और उससे माफी मांगी। भृत्य हैरान हो रहा था और कुछ कह नहीं पा रहा था। इस पर राजेंद्र बाबू ने उससे पुन: कहा तुलसी तुमने मुझे माफ तो कर दिया न। तब दोनों ही आंसुओं से रो रहे थे।
विश्वविद्यालय में आयोजित इस परिचर्चा के दौरान पता चला कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन में भी ज़मीन पर पटले पर बैठकर पारंपरिक तरीके से खाना खाते थे। किसी विशेष मेहमान के आने पर डायनिंग पर भोजन होता था।
इस परिचर्चा के बाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी दिवस पर आयोजित कविता पाठ व निबंध प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को भी पुरस्कार वितरित किए गए। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के दौरान छात्रों से कहा कि वो डॉ. राजेंद्र प्रसाद की लिखी किताबें- इंडिया डिवाइडेड, महात्मा गांधी और बिहार, महात्मा गांधी के चरणों में तथा Ideas of a nation तथा उनकी आत्मकथा का अध्ययन करें।