सांची विश्वविद्यालय में खुलेगा राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का क्षेत्रीय केंद्र
- पाण्डुलिपियों के संरक्षण, संवर्धन और शोध पर होगा कार्य
- राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के निदेशक और कुलपति के बीच चर्चा
- बौद्ध और वैदिक संस्कृति का अहम केंद्र रहा है सांची
सांची, मध्यप्रदेश: भारतीय संस्कृति, पाण्डुलिपि और इतिहास के महत्वपूर्ण ग्रंथों के संरक्षण, संवर्धन और उनको केंद्र में रखकर शोध आदि के उद्देश्य से राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का क्षेत्रीय केंद्र सांची विश्वविद्यालय में खुलने जा रहा है। यह केंद्र पाण्डुलिपियों के अध्ययन, अनुसंधान, और दुनिया भर में प्रचलित पाण्डुलिपि परंपराओं के प्रशासनिक, व्यावसायिक और विश्वस्तरीय महत्व पर केंद्रित होगा।
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय पहुंचे राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के निदेशक अनिर्बान दास और कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता के बीच क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करने पर सहमति बनी है। सांची विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के क्षेत्रीय केंद्र का मुख्य उद्देश्य भारतीय पाण्डुलिपि के आदिकालीन, मध्यकालीन और आधुनिक संदर्भों का अध्ययन करना है। इस केंद्र के माध्यम से, सांची विश्वविद्यालय पाण्डुलिपि शास्त्र, शास्त्रीय भाषाओं, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में विशेषज्ञता अर्जित कर सकेगा।
राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की स्थापना भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सन 2003 में की गई थी। जिसका उद्देश्य भारत में तथा दक्षिण एशियाई देशों व अन्य देशों में ले जाई गई पांडुलिपियों का अध्ययन और उनका संरक्षण करना है ताकि उनके माध्यम से पुरातन ज्ञान को पुनर्जीवित किया जा सके। सांची विश्वविद्यालय द्वारा मेनुस्क्रिप्टोलॉजी विषय पर एम.ए. पाठ्यक्रम भी प्रारंभ किया गया है। 2017 में पाण्डुलिपि संरक्षण पर सांची विश्वविद्यालय द्वारा एक राष्ट्रीय कार्यशाला का भी आयोजन किया गया था। विश्वविद्यालय छात्रों और शोधार्थियों को ब्राह्मी भाषा और सम्राट अशोक के काल व अन्य शासकों के दौर की अन्य प्रचलित भाषाओं का अध्ययन कराया गया था।