सांची विश्वविद्यालय में अंबेडकर जयंती का आयोजन
- वरिष्ठ पत्रकार व लेखक किशोर मकवाना का विशेष व्याख्यान आयोजित
- डॉ. अंबेडकर सदैव राष्ट्र प्रथम की वकालत करते थे
- अंत में बैठे व्यक्ति के उत्थान की बात करते थे डॉ. अंबेडकर
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज डॉ. भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती पर वरिष्ठ पत्रकार व लेखक श्री किशोर मकवाना का विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। श्री मकवाना ने डॉ. अंबेडकर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर का उद्देश्य था कि पंक्ति में अंत में बैठे व्यक्ति का उत्थान कैसे हो। उनके जीवन में वे सदैव ‘सर्वप्रथम राष्ट्र’ रहा। डॉ. अंबेडकर ने शोषित, पीड़ित के उत्थान के लिए कार्य करते हुए स्वयं को समर्पित कर दिया था और वे समरसता आधारित भारत का निर्माण चाहते थे।
श्री मकवाना ने बताया कि डॉ. अंबेडकर कहा करते थे कि शिक्षित व्यक्ति के पास यदि संस्कार नहीं हैं तो उसकी शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। श्री मकवाना ने कहा कि देश के श्रम मंत्री व जल नीति आयोग के अध्यक्ष रहे हुए डॉ. अंबेडकर ने देश में मज़दूरी का समय 12 घंटे से घटा कर 8 घंटे करवाया था तथा कर्मचारियों को पीएफ, स्वास्थ्य बीमा व महिलाओं हेतु मेटरनिटी लीव के नियम पारित करवाए थे।
डॉ. अंबेडकर द्वारा सर्वप्रथम देश में बांधों के निर्माण की योजना प्रस्तुत की गई थी जिसके कारण उड़ीसा में स्वतंत्र भारत का प्रथम बांध निर्मित किया गया था। उन्होंने बांधों के ज़रिए सस्ती बिजली, किसानों को खेती के लिए पानी तथा गांव-गांव तक पीने के पानी की उपलब्धता को प्रमुख सामाजिक मुद्दा बना दिया था। श्री मकवाना के अनुसार डॉ. अंबेडकर ने सर्वप्रथम नदियों को जोड़ने की परियोजना का समर्थन भी किया था।
सांची विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता ने अपने अध्यक्षीय भाषण से पूर्व खालसा पंथ की स्थापना, जलियांवाला बाग कांड को याद किया। डॉ. गुप्ता ने बताया कि जलियांवाला बाग कांड के बाद ही पूर्ण स्वराज की मांग देश में उठने लगी थी। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर तार्किक व्यक्ति थे और उन्होंने अपने पूरे जीवन में कुरीतियों, कुप्रथाओं का विरोध किया। डॉ गुप्ता ने कहा कि डॉ अंबेडकर ने 10 वर्षों के लिए आरक्षण को लागू किया था लेकिन आज तक इसे जारी रखना राजनीतिक पार्टियों की विफलता है जो समाज में समानता लागू नहीं कर पाई। उन्होने कहा कि आरक्षण समाज के राजनीतिक इस्तेमाल का औजार बन गया है।
सांची विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अल्केश चतुर्वेदी ने डॉ. अंबेडकर के विभिन्न गुरुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि छात्रों को डॉ. अंबेडकर वांग्मय पढ़ना चाहिए । उन्होने कहा कि डॉ अंबेडकर ने समाज सुधार की दशा में बहुत क्रांतिकारी कार्य किया।
डॉ. अंबेडकर जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय की छात्रा सुश्री सोनाली बारमटे द्वारा मराठी में डॉ. अंबेडकर स्तुति प्रस्तुत की गई। इसी तरह शोधार्थी छात्र श्री शुभम भंते द्वारा बताया गया कि डॉ. अंबेडकर किस प्रकार से मनुष्य की मानसिक स्वतंत्रता के बारे में कहा करते थे। विश्वविद्यालय के बौद्ध विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. रमेश रोहित ने शील, समाधि और प्रज्ञा के विचारों आधार पर डॉ. अंबेडकर को व्याख्यायित किया।