08.03.2022
‘पूर्वजों के संघर्ष से ही भारत राष्ट्र के रूप में स्थापित है’
- सांची विश्वविद्यालय में महिला दिवस पर विशिष्ट व्याख्यान
- भारत ‘मातृ शक्ति’ की उपासना का देश
- ‘स्वतंत्रता के बाद भारत के इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया’
सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। ‘मातृ शक्ति’ पर मुख्य वक्ता भारतीय इतिहास संकलन समिति के महासचिव डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा कि भारत सदा से ही मातृ शक्ति की पूजा करते आया है। उन्होंने कहा कि भारत सदैव से ही संग्राम जीवी रहा है और पूर्वजों के संघर्ष से ही भारत आज एक राष्ट्र के रूप में स्थापित है। उनका कहना था कि शक, हूण जैसे योद्धाओं ने आक्रमण किया लेकिन वे भी भारत की संस्कृति में रच बस गए।
डॉ बालमुकुंद ने कहा कि मशहूर पुराशास्त्री श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर ने वॉस्को डि गामा की स्पेन में लिखी डायरी पढी जिसमें लिखा है कि स्पेन व्यापार करने गए गुजरात के एक बड़े व्यापारी के जहाज़ के पीछे-पीछे वॉस्को-डी-गामा 1498 में कालीकट पहुंचा था। इस डायरी में उल्लेखित है कि भारत में हीरे-जवाहरातों का भंडार था, लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे। डॉ. बालमुकुंद के मुताबिक आज़ादी के बाद के भारत में इतिहास लेखन का कार्य ऑउटसोर्स कर दिया गया। जिसके कारण देश के छात्रों को इतिहास की सही शिक्षा नहीं पहुंच पा रही है। उन्होंने जोर दिया कि हमें अपने गांव, तहसील, ज़िले के इतिहास की जानकारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आजादी का संघर्ष गांव-गावं में हुआ लेकिन इसका जिक्र इतिहास से गायब है जिसे आजादी के अमृत महोत्सव के ज़रिये जुटाने का कार्य किया जा रहा है।
सांची विवि के कुलसचिव प्रो अलकेश चतुर्वेदी ने वक्ता का परिचय देते हुए कहा कि मातृशक्ति का सम्मान भारतीय संस्कृति का मूल है जिसमें राम से पहले सीता, कृष्ण से पहले राधा और शंकर से पहले गौरी का जिक्र आता है। उन्होने छात्रों से स्थानीय इतिहास को जानने का आव्हान भी किया।
सांची विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए इस विशेष व्याख्यान में पुरातत्व विज्ञानी डॉ. एस.बी ओटा, डॉ. नारायण व्यास, डॉ. सत्यनारायण, श्री एच.बी सेन, श्री सूर्यकांत व श्री शाक्य सम्मिलित हुए।