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प्रो. सागरमल जैन को श्रद्धांजलि अर्पित की गई

                                                                                                                                                                                     दिनांक 03.12.2020
प्रो. सागरमल जैन को श्रद्धांजलि अर्पित की गई   
  •  प्राकृत भाषा पर कार्यों के कारण मिला था राष्ट्रपति पुरस्कार
  • सांची विश्वविद्यालय की साधारण एवं कार्यपरिषद के सदस्य थे
  • 30 नवंबर को संथारा ग्रहण किया था

सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में प्राकृत भाषा एवं जैन साहित्य के उद्भट विद्वान प्रो. सागर मल जैन को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। प्रो. सागरमल जैन को ‘गुरुओं के गुरु’ के रूप में जाना जाता था। 50 से अधिक जैन साधु-साध्वियों ने प्रो. सागरमल जैन के नेतृत्व में पी.एच.डी की थी। वे पाली और प्राकृत दोनों ही भाषाओं के ज्ञाता और विद्वान थे। सांची विश्वविद्यालय की परिकल्पना के समय से ही प्रो. सागरमल जैन विश्वविद्यालय से जुड़े हुए थे। वे विश्वविद्यालय की साधारण परिषद एवं कार्यपरिषद के सदस्य थे। प्राकृत भाषा पर उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका था।

प्रो. सागरमल जैन की श्रद्धांजलि सभा में सांची विश्वविद्यालय के कुलसचिव, अधिष्ठाता, सभी प्राध्यापक और अन्य अधिकारी-कर्मचारी सम्मिलित हुए। इस शोक अवसर पर कुलसचिव श्री अदिति कुमार त्रिपाठी ने कहा कि अपनी वृद्धावस्था के बाद भी विश्वविद्यालय संबंधी किसी भी कार्य के लिए प्रो. सागरमल जैन सक्रिय रूप से अपना सहयोग प्रदान करते थे। वे ज्ञान, शोध और पठन-पाठन के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इतने अधिक आतुर होते थे कि प्रत्येक शोधार्थी को पर्याप्त सहायता उपलब्ध कराते थे। विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री संतोष प्रियदर्शी का कहना था कि विश्वविद्यालय के पाली भाषा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित विभिन्न ग्रंथों के अध्ययन में यदि विभाग के शिक्षकों को किसी भी प्रकार की परेशानी उतपन्न होती थी तो वो प्रो. सागरमल जैन जी से फोन पर ही उसका समाधान उनसे पूछ लेता था।  प्रो. जैन ने कई किताबें और शोध पत्र व लेख लिखे हैं जो ऑनलाइन sagarmaljain e-pustkalay पर उपलब्ध हैं।

88 वर्ष के प्रो. सागरमल जैन ने अस्वस्थता के चलते 30 नवंबर को संथारा ग्रहण किया था।