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आजादी का अमृत महोत्सव में हिंदू अस्मिता बोध पर चर्चा

दिनांक : 9 अप्रैल 2021

  • “भारतीय राष्ट्रवाद” का यथार्थ “भू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” से उत्पन्न
  • हिन्दुत्व “एक जातीय, सांस्कृतिक और राजनैतिक” पहचान- डॉ सावरकर
  • विचार करने की आवश्यकता कि हम गुलाम क्यों हुए-डॉ विश्वबंधु

आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता संग्राम एवं हिंदू अस्मिता पर संगोष्ठी संपन्न हुई। आजादी के 75 साल के उत्सव के अंतर्गत 75 हफ्तें तक चलने वाले कार्यक्रमों की कड़ी में डॉ विशवबंधु ने स्वतन्त्रता संग्राम में “हिन्दू अस्मिता-बोध” के महत्त्व को रेखांकित किया।

डॉ विशवबंधु ने स्वतत्रंता संग्राम में “हिन्दू अस्मिता-बोध” के महत्त्व को रेखांकित करते हुए बताया कि स्वतत्रता संग्राम ने अपनी संकल्पना “स्वदेशी राष्ट्रीय भावना” से ही प्राप्त की थी। “स्वदेशी राष्ट्रीय भावना” शब्द “भारतीय राष्ट्रवाद” को सन् ईस्वी 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति में सशक्त रूप से उभरे “राष्ट्रवाद” से पृथक् करती है। “भारतीय राष्ट्रवाद” का यथार्थ “भू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” शब्द से प्रकट होता है । और इसी से ही “बृहत् भारत” की परिकल्पना मूर्त्त रूप लेती है ।

वीर विनायक दामोदर सावरकर के द्वारा सन् ईस्वी 1923 में “Essentials of Hindutva” पुस्तक में “हिन्दुत्व” की अवधारणा का प्रतिपादन किया । उनके द्वारा हिन्दुत्व को “एक जातीय, सांस्कृतिक और राजनैतिक” पहचान के तौर पर प्रतिपादित किया गया । हिन्दु राष्ट्रवाद का जो सर्वाङ्ग सम्पूर्ण दर्शन हमारे सामने वीर सावरकर ने रखा, उसके बीज 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में “हिन्दु पुनर्जागरण” में मिलते है ।

19 वीं शती में “हिन्दू अस्मिता” के उत्प्रेरक नभगोपाल मित्र, राजनारायण बसु, बंकिम चन्द्र चटर्जी तथा बाल-पाल-लाल की तिगडी की रचनाओं का जिक्र किया गया ।

वरिष्ठ वक्ता डॉ नवीन मेहता ने अखंड भारत की संकल्पना व्यक्त करते हुए कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रभाकर पांडे ने किया।