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स्वराज, स्वराष्ट्र एवं स्व

03 अप्रैल 2021


  • सांची विश्वविद्यालय में आज़ादी का अमृत महोत्सव
  • राष्ट्र, हिंद स्वराज और अध्यात्म पर परिचर्चा
आज़ादी के अमृत महोत्सव के व्याख्यानों की कड़ी में आज सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में “स्वराज, स्वराष्ट्र एवं स्व” विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। इस व्याख्यान में भारतीय दर्शन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नवीन दीक्षित ने स्वतंत्रता, स्वराज और राष्ट्र की संकल्पना पर बातचीत की।

डॉ. दीक्षित ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही ‘राष्ट्र’ का अर्थ रहा है-एक ऐसा देश जिसकी अपनी स्वतंत्र शासन प्रणाली हो, जो रियासतों में न बंटा हुआ हो और जो राजनीतिक, सामरिक व भौगोलिक दृष्टि से एक हो। डॉ नवीन दीक्षित का कहना था कि 1792 की फ्रांसिसी क्रांति ने पूरी दुनिया में वंशवादी शासन प्रणाली के स्थान पर लोकतांत्रिक शासन प्रणाली स्थापित किए जाने की चेतना उतपन्न की।
डॉ नवीन दीक्षित ने अपने व्याख्यान में बताया कि तत्कालीन शिक्षा के माध्यम से भी लोग जागृत हुए और स्वतंत्र राज्य की मांग करने लगे। 1909 में महात्मा गांधी ने “हिंद स्वराज” नाम की किताब लिखी जिसमें राष्ट्र की स्पष्ट संकल्पना की गई थी।

डॉ दीक्षित का कहना था कि गांधी जी के स्वराज की संकल्पना में मिल मालिक, मिल मज़दूर, महिला-पुरुष, बुद्धिजीवी, श्रमजीवी सभी एक हो गए थे। उन्होंने ‘स्व’ पर चर्चा करने के दौरान भारत के अध्यात्म व दर्शन का ज़िक्र भी किया। उनका कहना था कि मनुष्य अपने आप में ही एक आध्यात्मिक, दार्शनिक व धार्मिक प्रणाली है। उन्होंने न्याय वैशिष्ठ, मीमांसा दर्शन, सांख्य दर्शन, अद्वैत दर्शन, चारवाक दर्शन, बौद्ध मत व जैन मत में ‘स्व’ को व्याख्यायित किया और बताया कि इन कालों में भारत एक पूर्ण स्वराज था।

सांची विश्वविद्यालय में प्रत्येक सप्ताह आज़ादी के अमृत महोत्सव के आयोजनों के तहत व्याख्यानों का आयोजन किया जा रहा है। पूरे देश के साथ-साथ मध्य प्रदेश सरकार भी आज़ादी के 75 वर्ष होने पर आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है।